12 May 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
“माँ होना एक भावनात्मक जरूरत है, एक अच्छा पत्रकार होना मेरा नागरिक कर्तव्य है और मेरी अभिरुचियां मेरे लिए शांति हैं। इन सभी के बीच संतुलन और सामंजस्य ही जीवन है।” – औली त्यागी
माँ होना आसान नहीं। क्या है माँ होना और इस दौरान किन चुनौतियों से गुजरना पड़ता है, ये कोई रियल मॉम ही बता सकती है। इसलिए बेबीचक्रा आज औली त्यागी की प्रेग्नेंसी और पैरेंटिंग जर्नी लिए लेकर आया है। औली त्यागी की इस जर्नी में सभी पैरेंट्स और गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ-न-कुछ टिप्स और सीख मौजूद हैं।
आइए, अब औली त्यागी के बारे में जानते हैं।
औली त्यागी पिछले 5 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत हैं। औली रेगुलर जॉब के साथ ही रिसर्च भी कर रही रही हैं और ढाई साल के बेटे सोहम की माँ हैं। औली जीवन में तमाम व्यस्तताओं के बीच पढ़ाई-लिखाई और संगीत-साहित्य में अपनी रूचि को बनाए रखती हैं, जिससे उन्हें सुंदर जीवन का निरंतर अनुभव होता रहता है।
चलिए, अब शुरू करते हैं औली त्यागी से पूछे गए सवालों और उनके जवाबों का सिलसिला।
प्रेग्नेंसी मेरे लिए आसान रही, शायद इसके पीछे की वजह मेरी उम्र थी, क्योंकि मैं महज 24 साल की थी। 24 साल की उम्र शरीर पर्याप्त ऊर्जा से भरा होता है, इसलिए मुझे पहले 3 महीने तक पता ही नहीं चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं।
मुझे माइल्ड PCOD है, इसलिए मैं समझ रही थी कि हार्मोनल गड़बड़ी की वजह से मुझे पीरियड्स नहीं आ रहे हैं। हम जो अर्ली प्रेग्नेंसी सिम्पटम्स के बारे में जानते हैं, उनमें से मुझे एक भी नहीं था। न उल्टी, न चक्कर और न ही खाने को लेकर क्रेविंग थी।
दवा लेने गयी तो मेरी डॉक्टर ने बताया कि मैं माँ बनने वाली हूं। चैलेन्ज के नाम पर सिर्फ हाई ब्लड प्रेशर था, क्योंकि मैं ओबेसिटी भी फेस कर रही थी। मैंने प्रेग्नेंसी के सातवें महीने तक रेगुलर जॉब की, लेकिन उसके बाद डॉक्टर ने मुझे ट्रैवेल न करने की हिदायत दी। फिर मैंने मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई करना बेहतर समझा।
मैं हमेशा से नॉर्मल डिलीवरी चाहती थी, लेकिन ड्यू डेट तक भी मुझे लेबर शुरू नहीं हुआ। ऊपर से प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों में मुझे यूरिन इन्फेक्शन हो गया। इन्फेक्शन के कारण होने वाले फ्लूइड लीकेज और एमिनियोटिक फ्लूइड लीकेज के बीच मैं और मेरे डॉक्टर अंतर नहीं कर पाए, जिसका नतीजा ये हुआ कि एमिनियोटिक फ्लूइड रिसता रहा और बिल्कुल कम हो गया।
इस इमरजेंसी में डॉक्टर को सिजेरियन डिलीवरी का रास्ता चुनना पड़ा, जिससे उबरने में मुझे 15 दिन का भी वक्त नहीं लगा। हालांकि, मैंने डॉक्टर की सलाह पर 3 महीने आराम किया और उसके बाद दोबारा काम पर लौटने का निर्णय लिया।
पैरेंटिंग एक चुनी हुई दौड़ है, जिसमें आप जी जान से दौड़ना चाहते हैं, लेकिन आने वाली बाधाओं के बारे में आपको पता नहीं होता। खासतौर पर पहली बार माता-पिता बनने पर। बच्चे बहुत नाजुक होते हैं, उनकी देखभाल बड़ी जिम्मेदारी है, जिसे वर्किंग वूमन के तौर पर निभाना आसान नहीं होता। ऐसे में सपोर्ट के लिए फैमिली की जरूरत होती है। सौभाग्य से मेरे पास वो सपोर्ट सिस्टम हमेशा से रहा।
बतौर पैरेंट मैंने ये सीखा है कि हर बच्चा परिवार में एक नए व्यक्तित्व के रूप में पैदा होता है। इसलिए उसके व्यक्तिगत के विकास के लिए हम पुराने ढर्रे पर नहीं चल सकते हैं। पैरेंटिंग की बदलती उन्नत शैलियों के बारे में हमें सीखना चाहिए। कठोर अनुशासन की जगह, बच्चे को गलतियों से सीखने देना मुझे अधिक व्यावहारिक लगता है।
मेरे पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। वो बिजी होने के बावजूद एक पिता की जिम्मेदारियों पर हमेशा खरे उतरते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान वो मेरे साथ मौजूद थे। जब कभी वो नहीं होते, तो परिवार वाले खासकर मेरी सासू माँ हर बात का ख्याल रखतीं थीं। भले ही व्यस्तता के चलते व्यक्तिगत तौर पर बच्चे के लालन-पालन में मुझे पति का डायरेक्ट सपोर्ट नहीं मिल पाया हो, लेकिन मेरी सासू माँ ने उनकी इस अनुपस्थिति को हमेशा पूरा किया।
मैं चाहती हूं मेरा बेटा सोहम प्रेम करना सीख सके। अपने काम से, प्रकृति से, समाज से और इन सबसे बढ़कर वो खुद से प्यार करे। एक प्यार से भरा हुआ इंसान, इस दुनिया में सब कुछ पा सकता है।
संबधों और काम के प्रति ईमानदार रहने से व्यक्ति का औरा (AURA) मजबूत होता है। उसे हराना आसान नहीं होता और वो जहां भी जाता है आत्मीयता का विस्तार करता है। मैं चाहती हूं, मेरा बेटा ये सब सीखे।
इसके लिए मैं बाल साहित्य की मदद लेने वाली हूं। लेकिन उससे पहले मैं अपने व्यवहार को निश्छल रखने का प्रयास करती हूं, क्योंकि बच्चे देखकर ही सीखते हैं।
छोटे बच्चे अपनी जरूरतें खुद पूरी नहीं कर पाते, जिसकी वजह से वर्किंग माताओं पर अतिरिक्त भार तो पड़ता ही है। मीटिंग्स के बीच उन्हें पॉटी ट्रेनिंग चाहिए, तो एक महत्वपूर्ण आर्टिकल के बीच में उन्हें टीवी देखना होता है। अभी वर्क फ्रॉम होम के विकल्प खुले हैं, तो घर में बच्चे आपको अपने कामों में भी उलझा कर रखते हैं।
इन सबके अलावा मेरे लिए जो सबसे पर्सनल चुनौती है, वो है मेरा अपना गिल्ट। मुझे नहीं पता बाकि वर्किंग मदर्स को ये महसूस होता है या नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि मैं अपने बच्चे को उसका पर्याप्त समय नहीं दे पाती हूं। इस सबके बीच राहत ये है कि मैं उसे अच्छा भविष्य देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।
वीनिंग के लिए मैंने उबले हुए मैश्ड आलू और सब्जियों की मदद ली। ये मेरे हिसाब से सबसे बेहतर होते हैं। इसके अलावा, जब बच्चों के दांत निकलते हैं, तो उन्हें गाजर और खीरे के लम्बे टुकड़े देने से उनके मसूड़ों को आराम मिलता है।
बढ़ते बच्चों के लिए सबसे जरूरी हैं उनकी सुरक्षा और देखभाल। खाने और सोने के अलावा उनका खेलना भी बहुत जरूरी है। टॉडलर बहुत एक्टिव और क्यूरियस होते हैं। उन्हें हर नए काम में सिर्फ और सिर्फ एडवेंचर नजर आता है, रिस्क नहीं।
इसलिए बच्चे की देखभाल के क्रम में सबसे पहले घर को किड्स फ्रेंडली बनाना मेरे लिए ज्यादा जरूरी था। मैंने चाकू-छूरी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को उसकी पहुंच से दूर रखा। दवाओं और केमिकल्स को भी सही जगह पर रखना शुरू किया।
बच्चों को व्यस्त रखने और क्रिएटिविटी को बढ़ावा देने के लिए वुडन ब्लॉक्स या पॉलीमर क्ले की मदद लेती हूं। इसके अलावा, हमेशा बच्चों को नई चीजें व आदतें सिखाने के लिए तस्वीरों से लबरेज किताबों की सहायता लेती हूं।
व्यवहारिक तौर पर हमेशा बच्चे से प्यार से पेश आने की कोशिश की। बढ़ते बच्चे काफी इमोशनल होते हैं, इसलिए कब-कौन-सी बात उनके दिल में चुभ जाए कहा नहीं जा सकता। इसलिए अगर कभी किसी बात पर गुस्सा भी कर दिया, तो मैं कुछ ही देर में उसे प्यार से बात करती हूं। अपने बच्चों को उस बात से जुड़े पहलू समझाती हूं, जिससे मुझे गुस्सा आया।
कोई भी खाने की चीज हो, मैं सोहम से कहती हूं कि बांट कर खानी चाहिए। मैं उसे साथ के बच्चों संग प्यार से पेश आने के लिए कहती हूं। वो अपने खिलौने और अपने जूते-चप्पल हमेशा जगह पर रखता है, क्योंकि उसे पता है कि सबको अपना-अपना काम करना होता है।
किचन से लेकर लांड्री तक वो मदद करने की हर नाकाम कोशिश करता है, लेकिन मैं कभी उसे मना नहीं करती। मैं उसे सभी लाइफ स्किल्स में शामिल रखने की कोशिश करती हूं, ताकि उसे ये न लगे कि घर का काम सिर्फ लड़कियां करती हैं। यही कुछ सोशल रिस्पांसबिलिटीज हैं, जो मैं अपने बेटे की आदत में जल्द से जल्द लाने का प्रयास कर रही हूं।
अगर आपकी प्रेग्नेंसी में काम्लिकेशंस नहीं हैं, तो आपको बस अच्छी क्वालिटी के बॉक्स खरीदकर उनमें ढेर सारे हेल्दी स्नैक्स भरने हैं। फिर रोजमर्रा की तरह ऑफिस जाकर काम के साथ इन्हें खाना है। आप प्रेग्नेंसी बैग में हेल्दी स्नैक्स रखें और अपनी ऑफिस की लाइफ और प्रेग्नेंसी दोनों को एंज्वाय करें।
नयी माँ के लिए यही एडवाइज है कि आप मदद के लिए पूछें, अकेले सब कुछ करना सही नहीं है। इससे अपने लिए समय निकालना आसान हो जाएगा। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचने का भी यही तरीका है कि बच्चे के आने के बाद भी आप अपनी हॉबीज को जिंदा रखें। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए भी यथासंभव कोशिश करनी चाहिए।
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