13 May 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
प्रेग्नेंसी के सफर और पेरेंटिंग हैक्स को और भी ज्यादा रोचक बनाने के लिए हम फिर से आपके लिए लेकर आए हैं एक और न्यू मॉम का सफर। हो सकता है कि आप में से कई लोग हमारी नई इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर मॉम बंचिका भवनानी से परचित भी हों।
अगर नहीं भी जानते हैं, तो चलिए बताते हैं कि बंचिका भवनानी इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर के साथ ही मॉम की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। इनके प्रोफाइल पर पेरेंटिंग हैक्स और टिप्स के कई मजेदार रील्स देख सकती हैं।
बंचिका भवनानी दिल्ली एनसीआर के गुरुग्राम में रहती हैं, इन्होंने कंप्यूटर साइंस में मास्टर भी किया हुआ है। आगे खुद ही पढ़ें इनके पेरेंटिंग का सफर और इनके खास पेरेंटिंग हैक्स।
मैंने आगरा के दयालबाग यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर साइंस में मास्टर किया है, जिसके तुरंत बाद ही मेरी शादी हो गई। फिर शादी के एक-डेढ़ साल बाद मैंने वापस से अपने करियर को शुरू करने का प्लान किया, लेकिन शादी के बाद आए इस गैप की वजह से जॉब का मिलना मुश्किल था। तो फिर मैंने स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और उसके बाद लीगल सर्विस प्रोवाइडर फिल्ड में शिफ्ट हो गई।
उसी दौरान मुझे मेरी प्रेग्नेंसी का पता चला। हमनें कंसीव की प्लानिंग नहीं बनाई थी, पर जब हमें इसका पता चला, तो यह हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी थी।
मैं मैटरनिटी लीव के बाद वापस से अपना जॉब शुरू करना चाहती थी। उस समय मेरा बेटा सिर्फ पांच ही महीने का था, तो ऐसी कई और भी वजहें थी जिनकी वजह से सब कुछ एक साथ मैनेज करना आसान नहीं हो पा रहा था, तो ऐसे में मुझे मेरा जॉब छोड़ना पड़ा।
गर्भावस्था के दौरान मुझे कई तरह की परेशानियां हुई थीं। इसी दौरान मुझे क्रोनिक अर्टिकेरिया हो गया था और प्लेसेंटा भी लो लाइन पर था। इसकी वजह से प्रेग्नेंसी के शुरुआती तीन महीने मुझे पूरी तरह से बेड रेस्ट करना पड़ा और उल्टियां तो मुझे प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों तक होती थी।
हर समय इतनी उल्टियां होती थी कि मैं कुछ खा भी नहीं पाती थी। इस वजह से पूरी प्रेग्नेंसी मुझे बस खिचड़ी ही खाना पड़ा था।
मैं कहूंगी कि पेरेंट्स बनने की कोई परिभाषा नहीं बताई जा सकती है। यह आपने आप में ही एक दुनिया होती है। पेरेंट्स बनने के बाद लाइफ पूरी तरह से बदल जाती है। यह एक मैजिक फ्लिप की तरह होता है, सिर्फ एक ही दिन में सब कुछ बदल जाता है।
एक दिन पहले जहां आप पार्टी कर रहें होते हैं, उसके तुरंत दूसरे दिन बच्चे की पॉटी साफ कर रहे होते हैं।
मैं और मेरे पति न्यूक्लियर फैमिली (एकल परिवार) में ही हैं, तो बिना पति के सहयोग के बच्चे की परवरिश की ही नहीं जा सकती है। उदाहरण के लिए, जैसे मेरे पति बेटे को नहला देते हैं, तो उस समय मैं लंच बना लेती हूं। वहीं, हम दोनों का ही एक करियर है, तो एक-दूसरे को सपोर्ट करना ही होता है।
जब वह छोटा था, तो मुझे उसके साथ वीडियो बनाने में कोई परेशानी नहीं होती थी। पर अब उसके अपने नजरिए, पसंद-नापसंद के साथ ही उसके मूड पर भी चीजें निर्भर करती हैं। अगर वीडियो शूट करते समय उसका खेलने का मन होता है, तो उस समय उससे कोई डायलोग बुलवाना ये बहुत ही मुश्किल काम होता है।
इसके अलावा, अगर वो किसी वीडियो का पार्ट नहीं बनना चाहता है, तो इसके लिए मैं उसे फोर्स भी नहीं करती हूं। मैं बस अभी अपने वीडियो के लिए उसका बहुत ही कम समय लेती हूं, ताकि इससे उसका शेड्यूल खराब न हो।
अगर वर्क फ्रॉम होम है, तो यह सबसे बेस्ट है, क्योंकि इससे बच्चे को फीडिंग कराने और ऑफिस का काम करने दोनों में ही आसानी हो सकती है। मेरी बात करूं, तो मैंने मैटरनिटी लीव के बाद ऑफिस जाना शुरू किया था। मेरा मिल्क सप्लाई बहुत ही कम था और अगर मैं ब्रेस्ट पंप भी करती थी, तो उसका भी कुछ पॉजटिव रिजल्ट मिलता नहीं था। ऐसे में मुझे एक ही हफ्ते में जॉब से रिजाइन देना पड़ा।
तो अगर जिन मॉम्स का मिल्क सप्लाई अच्छा है, तो वे पंप कर सकती हैं और बच्चे को डे केयर में देखभाल के लिए रख सकती हैं। या फिर अगर बड़ा परिवार है, तो दादी-नानी के पास भी बच्चे को कुछ समय के लिए देखभाल के लिए दिया जा सकता है।
बाकी मुझे ऐसा लगता है कि अगर मैंने ब्रेस्टफीड की जगह पर मेरे बच्चे को बॉटल फीडिंग दिया होता, तो शायद आज मेरा करियर कहीं ज्यादा बेहतर होता।
मुझे पता है कि अपने बच्चे को छोड़कर ऑफिस जाना बहुत ही मुश्किल भरा कदम होता है, लेकिन जब बच्चा अपनी माँ को एक सक्सेफुल प्लेस पर देखता है, तो इससे उसे जरूर खुशी मिलेगी। शायद तब उसे यह समझ भी आएगा कि उसे बचपन में डे केयर या नैनी के पास रखना कितना जरूरी था।
जिस तरह आप नहीं चाहते हैं कि आपकी वजह से आपके बच्चे के करियर को किसी तरह का नुकसान हो, इसी तरह बच्चे भी नहीं चाहते हैं कि उनकी वजह से उनकी माँ के करियर को किसी तरह का नुकसान हो।
अभी तो उसके साथ किसी भी वीडियो को शूट करने के लिए मुझे हजार बार से ज्यादा का रिटेक लेना होता है। तो अभी मैं कोशिश करती हूं कि अगर कोई कोलैबोरेशन शूट है, तो उसमें उसे न ही शामिल करूं। पर जैसा अभी मदर्स डे था, तो ऐसी कुछ वीडियो में मुझे मेरे बेटे को शामिल करना जरूरी हो जाता है।
सबसे पहले, तो मैं यही कहूंगी कि खुद को हमेशा अपने बच्चे के साथ रहने के लिए पुश न करें। खुद को थोड़ी-थोड़ी देर या बीच में एक-एक घंटे का ब्रेक दें। अगर वह सो रहा है, तो उसके आस-पास न रहें। ऐसा करने पर बच्चे को भी इसकी आदत हो सकती है कि उनकी माँ भी हर समय के लिए उनके पास नहीं रह सकती हैं, जो पूरी तरह से सामान्य है।
इससे माँ भी आसानी से दूर रहकर अपने दूसरे जरूरी घर के या ऑफिस के काम निपटा सकती हैं और वह खुशी-खुशी घर पर पापा और दूसरे लोगों के साथ रह सकता है।
दूसरा यह कि बच्चा जैसे ही 6 माह का होता है, उसे फिंगर फूड्स खिलाना और देना शुरू कर दें। इससे बच्चे में सेल्फ फीडिंग की आदत जल्दी विकसित हो सकती है। यह मैं मेरी गलती के अनुभव से बता रही हूं।
मैं मेरी गलती बताऊं, तो मुझे लगता था कि फिंगर फूड्स से वह खुद को बहुत गंदा कर लेता है और आस-पास चीजें बिखेर देता है। ऐसे में मुझे ज्यादा सफाई न करना पड़े, इसलिए मैं उसे खुद ही खिला देती थी। अब हुआ क्या कि वह खुद से खाता ही नहीं है। मुझे अभी भी खुद अपने हाथ से उसे खाना खिलाना पड़ता है। यहां तक की स्कूल में भी वह अपनी टीचर को ऐसे ही परेशान करता है। टीचर उसे खिलाएं, तो ही वह खाना खाता है।
तीसरा यह कि जैसे ही आपको लगता है कि बच्चा खुद से अपना यह काम कर सकता है, तो उसमें उसकी बहुत ज्यादा मदद नहीं करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा खुद से बैठना या चलना सीख गया है, तो इसके बाद से बच्चे के बैठने या चलने वाले किसी भी काम में उसकी मदद नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से पेरेंट्स बच्चे को आत्मनिर्भर बना सकते हैं।
आखिरी में कहूंगी कि बच्चे के लिए क्वालिटी स्क्रीन टाइम का भी सहारा ले सकती हैं, पर एक लिमिट में। बच्चे को क्या देखना है यह खुद से ही उसे लगा कर फोन या टीवी ऑन करें। जैसा की यूट्यूब पर आज कई तरह के कटेंट मौजूद हैं, तो इसका ध्यान रखें। स्क्रीन पर बच्चों को कार्टून व चाइल्ड शोज ही दिखाएं।
सबको ऐसा लगता है कि मैं डाइटिंग करती हूं, पर मैं बिल्कुल भी डाइटिंग नहीं करती हूं। शायद मेरा बॉडी टाइप ही ऐसा है। अगर मुझे कभी लगता है कि वेट गेन हो रहा है, तो मैं खुद से ही इंटरमिटेंट फास्टिंग या डाइटिंग कर लेती हूं। इस दौरान मैं सुबह करीब 4 से 11 बजे के बीच पहला मील खाती हूं, फिर 4 से 7 बजे के बीच में आखिरी मील खाती हूं। इस दौरान अगर मुझे कभी गैस्ट्राइटिस की समस्या लगती है, तो रात में 10 बजे के करीब में एक गिलास ठंडा दूध पीती हूं।
इसके अलावा, इन बाकी के 8 घंटों के बीच मेरा जब भी जो मन करता है, मैं वो खा लेती हूं। मैं कभी डाइटिंग नहीं कर सकती हूं।
पहले इंस्टा पर लोग कंटेट रीड करना पसंद करते थे। कुछ अच्छा लिखो तो उसका अच्छा रिस्पांस मिलता था। लेकिन अभी लोगों को वीडियो, रील्स और ग्लैमर्स ज्यादा पसंद आते हैं। यहां तक मॉम इंफ्लूएंसर्स में भी लोग ग्लैमर ही ढूंढते हैं। यही वजह है कि अब मैं भी इंस्टा पर पहले से कम एक्टिव रहने लगी हूं।
शुरू में लोग मेरे लिखे कंटेट से खुद को रिलेट करते थे और उसे पढ़ना पसंद करते थे। पर अभी ऐसा लगता है कि लोग सिर्फ वीडियो और रील्स ही देखना चाहते हैं। वहीं, मेरी दिलचस्पी शुरू से ही पेरेंटिंग हैक्स और टिप्स में रही है।
मैं खुद की बात करूं, तो मैंने मेरे इंस्टा अकाउंट के अलावा मेरे बेटे का एक अलग से अकाउंट बना दिया है। बड़े होने पर वह उस अकाउंट को यूज करना चाहता है या नहीं, यह पूरी तरह से उसकी अपनी मर्जी होगी। इसके अलावा, अभी तक मुझे ऐसा न कभी फील हुआ न ही किसी ने सेलेब्रेटी की तरह ट्रीट किया है।
वहीं, मेरे बेटे की बात करूं, तो वह खुद ही लोगों से घुलना-मिलना बहुत पसंद करता है। वह अंजान लोगों से भी एक परिवार की तरह मिलता है। तो मुझे लगता है कि वह खुद से अपना एक अलग चार्म बनाता है और वह आगे इसे कैसे लेकर जाएगा, यह उसकी अपनी मर्जी होगी।
हो सकता है कि आपमें से कुछ लोगों को मॉम इन्फ्लुएंसर बंचिका भवनानी के पेरेंटिंग पर विचार पसंद आए हों। वहीं, इस बारे में कुछ लोगों की अलग राय भी हो सकती है, जो पूरी तरह से लाजमी है। जिस तरह हर किसी का गर्भावस्था का सफर और अनुभव अलग-अलग होता है, उसी तरह पेरेंटिंग स्टाइल और पेरेंटिंग हैक्स भी अलग-अलह हो सकते हैं।
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