13 Jun 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
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प्रेग्नेंसी और पेरेंटिंग जर्नी को और भी करीब से जानने के लिए हम फिर से आपको एक नई इन्फ्लुएंसर मॉम से मिलवा रहे हैं। इस बार हमारी स्पेशल मॉम हैं तान्या भाटिया। तान्य भाटिया कानपुर की रहने वाली हैं और एक टीचर के प्रोफेशन के साथ ही एक बेटी की मॉम होने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रहीं हैं। तो चलिए, खुद तान्या से ही जानते हैं उनकी प्रेग्नेंसी और पेरेंटिंग का सफर।
मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है और दिल्ली के ही श्री राम कॉलेज और कॉमर्स से एमबीए में अपनी पोस्ट ग्रैजुएशन पूरी की है। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मैंने एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर बिजनेस एनालिस्ट के रूप में कुछ सालों तक काम भी किया और अभी मैं एक टीचर हूं।
मेरी शादी-शुदा जीवन की बात करूं, तो साल 2015 में मैंने शादी की। मेरी शादी अरेंज्ड कम लव मैरिज है। हम मैट्रिमोनियल वेबसाइट के जरिए मिले थे। फिर 2018 में मैंने मेरी बेटी को जन्म दिया और अपने पेरेंटिग जर्नी को शुरू किया।
मैं बहुत ही सिन्सीर बच्ची रहीं हूं। जहां तक मुझे मेरे टीनएजर के पल याद हैं, तो मैं मेरी मम्मी की सबसे डिसिप्लीन बेटी थी। हम दो बहनें और एक भाई हैं, जिसमे मैं मिडिल चाइल्ड हूं। वहीं, खुद में माँ बनने के बाद हुए बदलाव की बात करूं, तो जाहिर सी बात है कि माँ बनने के बाद आपके पास एक बच्चा आ जाता है, जिसकी देखभाल की जिम्मेदारी सबसे जरूरी हो जाती है।
हर नई माँ के लिए बच्चे के जन्म और परवरिश का शुरुआती दौर बहुत ही मुश्किल हो सकता है, क्योंकि पहली बात, तो यह कि हमें हमारे आस-पास से इतने सजेसन मिलते रहते हैं, जो हमें बहुत कन्फ्यूज कर देते हैं कि कौन-सी बात माननी चाहिए और कौन-सी बात नहीं।
माँ बनने के बाद हर कोई अपने बच्चे के लिए सबसे अच्छा तरीका ही चाहता है। ऐसे में खुद का पैशन फॉलो करने के लिए समय कम हो जाता है, लेकिन एक बार जब आप बच्चे को संभालने के तरीके सीख जाते हैं और चीजों को मैनेज कर लेते हैं, तो खुद के लिए वापस से समय निकाला सकते हैं।
ऐसे में कम से कम 6 महीने का समय तो बच्चे को देना ही चाहिए। हालांकि, कभी-कभार परिस्थितियों के अनुसार भी जॉब दोबारा भी करना पड़ सकता है और छोड़ना भी पड़ सकता है।
मेरी प्लानिंग प्रेग्नेंसी थी और माँ बनने की भवनाएं सबसे अलग होती हैं। जब हमें पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं, तो मैं और मेरे पति दोनों ही बहुत एक्साइटेड थे। यह पूरा चरण अपने आप में एक नई जर्नी होती है। मैनें अपनी नौ महीने की गर्भावस्था में खुद में कई बदलावों का अनुभव किया। फिर माँ बनने के बाद आप अपने आप ही एक अलग इंसान बन जाते हैं।
मेरी बात करूं, तो माँ बनने के बाद मेरी पर्सनालिटी बहुत चेंज हो गई। मेरे अंदर बहुत पेशेंस आ गया और माँ बनने के साथ ही मेरी आदतों में लोगों को खुशियां देने, उन्हें खुश रखने की आदत अपने आप ही शामिल हो गई।
मेरे ख्याल से पेरेंटिग के नए और पुराने दोनों ही तरीकों को अपनाना चाहिए, पर एक बैलेंस के साथ। जैसा कि पहले छोटे बच्चों के लिए लंगोट का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब बच्चों के लिए डायपर उपलब्ध है, जो अच्छा और एक बेस्ट ऑप्शन भी माना जा सकता है। ऐसे में हम बच्चे को कुछ टाइम डायपर में रख सकते हैं और कुछ टाइम नॉर्मल बिना पतलून के रख सकते हैं और कुछ टाइम लंगोट भी पहना सकते हैं।
यह तरीका माँ और बच्चे दोनों के लिए यह आरामदायक व सुविधाजनक माना जा सकता है। मैं बस यही कहूंगी कि हमें पूरी तरह मॉर्डन पेरेंटिग को नहीं अपनानी चाहिए और न ही अपने पुराने पेरेंटिग के तरीकों को भूलना चाहिए। बस दोनों को बैलेंसे के साथ एक बीच का रास्ता बनाते हुए फॉलों करना चाहिए।
(अगर डायपर या लंगोट के कारण शिशु को डायपर रैशेज होता है, तो बेबीचक्रा का डायपर रैशेज क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं।)
मुझे मेरे बच्चे की परवरिश में मेरे पति और सासुराल वालों का पूरा सहयोग मिलता है। मैं बिना किसी चिंता के अपने बच्चे को घर पर छोड़कर अपने जॉब पर जा सकती हूं। जॉब के अलावा, अगर मुझे किसी दूसरे काम से भी बाहर जाना है, तो भी बिना किसी चिंता के मैं अपने बच्चे को घर पर छोड़कर जा सकती हूं। घर या घर के बाहर जब भी मैं काम में बिजी रहती हूं, तो मेरे पति या सास जिनके भी पास समय होता है, वो उसकी देखभाल करते हैं।
आजकल ऐसा बहुत कम है कि बच्चों को दूसरों बच्चों के साथ खेलने या बिजी रहने के लिए छोड़ा जा सके। ऐसे में पजल्स व ब्लॉक जैसे खिलौने काफी मददगार हो सकते हैं। इससे बच्चा खुद से क्रिएटिव बन सकता है और और खुद को इंगेज रख सकता है। साथ ही, माँ भी बिना किसी परेशानी के अपना दूसरे निजी काम पूरा कर सकती हैं।
समय के साथ हमें बच्चों को इंडिपेंडेंट रहने की आदत सिखानी चाहिए, क्योंकि जितनी जल्दी आप यह जानेंगे कि आपका बच्चा खुद से यह काम सीख रहा है, आप उतनी ही जल्दी उसे किसी नए काम को सिखने और करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
इसके लिए मैं कुछ तरह के गेम्स, टूल और एक्टिविटी को ढूंढती रहती हूं, जिससे मैं अपनी बेटी को बिजी रख सकूं। इससे मैं आसानी से मेरा ऑफिस और घर का काम कर लेती हूं, मेरी बेटी भी अपने आप में इंगेज रहती है।
मेरी प्रेग्नेंसी की पूरी जर्नी बहुत ही स्मूद रही है। मैंने दो-तीन महीने का मैटरनिटी लीव लिया था, जिसे बाद में तीन महीने का और भी बढ़ा लिया। क्योंकि मैं मेरे बच्चे को छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। इसके साथ ही, मैंने एक-डेढ़ महीने तक मेरी बेटी को ट्रेन भी किया कि अगर वो मुझे अपने आप-पास नहीं देखती है, तो उसे परेशान नहीं होना चाहिए। इस दौरान वह घर में दूसरे सदस्यों के साथ खेल सकती है।
अचानक से बच्चे से दूर जाने पर बच्चे को एंग्जायटी हो सकती है। ऐसे में मैटरनिटी लीव के बाद ऑफिस जाना शुरू करने से पहले बच्चों को धीरे-धीरे माँ से दूर रहने की आदत सिखाई जा सकती है। शुरू में बच्चे को माँ से दूर रखने के आदत सिखाने के लिए उन्हें घर पर एक-दो घंटे के लिए अकेले छोड़ा जा सकता है। फिर धीरे-धीरे इन घंटों का समय बढ़ाया जा सकता है।
यह पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों के किसी भी सोशल मीडिया पर कितना एक्सपोज करना चाहते हैं। जैसा हम खुद भी अपना कुछ टाइम स्क्रीन को देते हैं, तो ऐसे में बच्चों को भी पूरी तरह से इससे दूर नहीं रखा जा सकता है। वहीं, बच्चा जो देखेगा वो वही करेगा। ऐसे में पेरेंट्स को एक बैलेंस बनाना चाहिए।
यहां देखें किस तरह वे अपनी बेटी को इंगेज रखती हैं इसका वीडियो
पेरेंट्स को खुद के लिए भी स्क्रीन टाइम लिमिट करनी चाहिए और और एक लिमिट के साथ बच्चों को धीरे-धीरे सोशल एप्स की समझ देनी चाहिए, ताकि वे खुद से उसे एक्सप्लोर कर पाएं। मैं और मेरी बेटी कभार-कभार रील्स बना लेते हैं। उसे पता है रील्स क्या है। ऐसे में मैं एक मीडवे को फॉलो करती हूं, ताकि वह खुद से इनके बारे में सीखे और खुद से इन्हें एक्सप्लोर कर पाए।
इन इंडोर गेम्स टिप्स से भी आप बच्चों के इंगेज रख सकते हैं
आज के जमाने में अधिकतर लोग अपने बच्चों को यह बोलते हैं कि उन्हें डॉक्टर बनना है, मेकअप आर्टिस्ट बनना है या कुछ और बनना है। पर जो सबसे जरूरी है कि वे किस तरह वे खुश रहें और कैसे अपनी इच्छा के अनुसार खुद को बनाएं, यह बोलना कहीं न कहीं भूल जाते हैं। तो मैं बस यही चाहती हूं कि मैं और मेरा बच्चा खुशहाल रहे। इसके लिए हमें किसी तरह की फेमस पर्सनालिटी होने की जरूरत नही है। हम छोटी-छोटी बातों पर खुश होना सीख सकते हैं।
मैं खुद के लिए चाहती हूं कि मेरे आस-पास खुश मिजाज के लोग रहें और मेरी बेटी भी ऐसे ही लोगों के बीच में रहे। ताकि वह खुद भी खुश रह सके।
पेरेंटिग आसान नहीं है और हमें यह तभी पता चलता है जब खुद से पेरेंट बनते हैं। तभी इसका अंदाजा लगता है कि हमे बड़ा करने में, हमारी देखभाल करने में हमारी माँ को कितना कुछ सहना पड़ा होगा। ऐसे में पेरेंटिंग की जर्नी को आसान बनाने के लिए किसी तरह का स्ट्रेस नहीं लेना चाहिए।
जैसा कि मान लीजिए आप अपने बच्चे को सिर्फ हेल्दी फूड खिलाना चाहते हैं, पर उसके हफ्ते में एक-आधी बार जंक फूड खा लिया है, तो इसे लेकर चिंता न करें। मैंने ऐसी कई न्यू मॉम्स को देखा है, जो बच्चे के हेल्दी खाने को लेकर स्ट्रेस में आ जाती हैं। ऐसे में खुद से इसके बीच बैलेंस लाने की कोशिश करें। हफ्ते में जहां पांच दिन घर का बना खाना खिलाएं, वहीं दो दिन जंक फूड खाने की भी छूट दे सकती हैं।
मैंने प्रेग्नेंसी के टाइम कोई खास डाइट या एक्सरसाइज तो नहीं फॉलो किया है। पर मैं खुद से उन दिनों बहुत एक्टिव रहती थी। अपनी गर्भावस्था के दिनों में मैं घर के भी काम कर लेती थी और स्कूल पढ़ाने के लिए भी जाती थी। और अब मैं यह खुद से भी नोटिस करती हूं कि मेरी बेटी भी शुरू से बहुत एक्टिव है। बड़े-बूढ़े भी ऐसा बोलते हैं कि गर्भावस्था के दिनों में आप जितना एक्टिव रहेंगे, बच्चा भी वैसा ही रहेगा।
मैं अपने अनुभव से ऐसा कह सकती हूं कि प्रेग्नेंसी के दिनों में आप जैसा अनुभव करते हैं, करते हैं, सोचते हैं और बोलते हैं, वैसी ही आदतें बच्चे में भी देखी जा सकती हैं। इसके अलावा, सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि प्रेग्नेंसी कोई डिजीज नहीं है। हां अगर इस दौरान कोई हेल्थ कंडीशन है और डॉक्टर ने पूरी तरह से बेड रेस्ट की सलाह दी है, तो ही घर पर बैठें।
तान्या का यह भी कहना है कि प्रेग्नेंसी में तनाव न लें। बैलेंस बनाने कि कोशिश करें। खुश रहें और अपनी प्रेग्नेंसी और फिर पेरेंटिंग जर्नी का आनंद लें।
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