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नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है? जानें क्या है दोनों में अंतर।

नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है? जानें क्या है दोनों में अंतर।

29 Mar 2023 | 1 min Read

Mousumi Dutta

Author | 387 Articles

अगर आप जल्द माँ बनने वाली हैं तो जाहिर है, आप इस बात को लेकर टेंशन में होंगी कि नॉर्मल डिलीवरी करना चाहिए या सिजेरियन डिलीवरी। इसके लिए आपको यह समझने की जरूरत है कि नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है? या नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी के फायदे कौन-कौन-से हैं? इन दोनों में कौन-सा डिलीवरी का ऑप्शन आपके लिए सेफ है, इन सब बातों को समझने की जरूरत है। 

नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है, यह जानने के लिए सबसे पहले जान लेते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी क्या होता है। 

नॉर्मल डिलीवरी या वजाइनल डिलीवरी क्या होता है? । What is Normal or Vaginal Delivery in Hindi

शिशु को जन्म देने का सबसे आम तरीका है, वजाइनल या नॉर्मल डिलीवरी। वजाइनल डिलीवरी के दौरान यूटेरस सिकुड़ता है और सर्विक्स ओपेन होता है और बेबी को वजाइना या बर्थ कैनल से बाहर निकालने के लिए धकेलता है। आम तौर पर डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि भ्रूण और माँ दोनों के लिए ये सुरक्षित होता है। गर्भावस्था के 37 और 42 सप्ताह के बीच अक्सर नॉर्मल डिलीवरी होता है।

विभिन्न प्रकार की नॉर्मल डिलीवरी होती हैं: स्पॉन्टेनियस वजाइनल डिलीवरी , इंडयूस्ड वजाइनल डिलीवरी और असिस्टेंट वजाइनल डिलीवरी।

स्पॉन्टेनियस वजाइनल डिलीवरी: एक योनि प्रसव जो अपने आप होता है और लेबर इंड्युसिंग मेडिसन देने की जरूरत नहीं होती है। 

इंडयूस्ड वजाइनल डिलीवरी : दवाएं या अन्य तकनीकें लेबर पेन शुरू करवाने में मदद करती हैं और आपके सर्विक्स को तैयार करती हैं। इसे लेबर इंडक्शन भी कहा जाता है।

असिस्टेंड वजाइनल डिलीवरी: इस प्रक्रिया में बच्चे को बाहर निकालने के लिए फोरसेप्स या वैक्यूम डिवाइस की मदद ली जाती है। स्पॉन्टेनियस और इंडयूस्ड वजाइनल डिलीवरी दोनों में सहायता करता है।

सिजेरियन डिलीवरी क्या होता है?। What is Cesarean Delivery in Hindi

सिजेरियन डिलीवरी को सी-सेक्शन या सिजेरियन सेक्शन भी कहा जाता है। यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें  पेट और गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को जन्म दिया जाता है। जब वजाइनल डिलीवरी संभव या सुरक्षित नहीं होता है, या जब माँ या बेबी के स्वास्थ्य को खतरा होता है, तब सिजेरियन डिलीवरी करवाया जाता है।

सिजेरियन डिलीवरी करने का प्लान इन हालातों में किया जाता है-

  • सेफालो पेल्विक डिस्प्रापोर्शन (सीपीडी)
  • पिछला डिलीवरी सी-सेक्शन होना
  • मल्टीपल बर्थ होने की संभावना
  • प्लेसेंटा प्रेविया
  • ट्रांसवर्स लाई
  • ब्रीच प्रेजेंटेशन
  • हेल्थ कंडिशन
  • ऑब्स्ट्रक्शन

इन हालातों में बिना प्लान किए सर्जरी करने की नौबत आ सकती है- 

  • प्रसव प्रक्रिया का नहीं बढ़ पाना
  • अम्बिलिकल कॉर्ड कंप्रेशन
  • अम्बिलिकल कॉर्ड प्रोलैप्स
  • प्लेसेंटल एबॉर्शन
  • फेटल डिस्ट्रेस
नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें नॉर्मल डिलीवरी के फायदे और नुकसान
नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें नॉर्मल डिलीवरी के फायदे और नुकसान/चित्र स्रोत: फ्रीपिक

नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें नॉर्मल डिलीवरी के फायदे और नुकसान। Pros or Cons of Vaginal Delivery in Hindi

नॉर्मल डिलीवरी करने के फायदे-

  • सिजेरियन डिलीवरी की तुलना में नॉर्मल डिलीवरी में माँ को अस्पताल में कम समय के लिए रहना पड़ता है।
  • आम तौर पर नॉर्मल डिलीवरी में बड़ी सर्जरी से जुड़े जोखिमों से बचा जा सकता है, जैसे कि हेवी ब्लीडिंग, जख्म, इंफेक्शन, एनेस्थीसिया की प्रतिक्रिया और लंबे समय तक चलने वाला दर्द। नॉर्मल डिलीवरी में बहुत बड़ी सर्जरी न होने के कारण, माँ जल्द ही स्तनपान शुरू करने में सक्षम हो सकती हैं।
  • वजाइनल डिलीवरी होने पर बच्चा माँ के पास जल्दी जा सकता है और ब्रेस्टफीड करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो सकती है।
  • नॉर्मल डिलीवरी के दौरान, प्रक्रिया में शामिल मांसपेशियों के द्वारा शिशु के फेफड़ों से तरल पदार्थ को निचोड़ने की अधिक संभावना होती है, जो फायदेमंद है क्योंकि इससे बच्चों को जन्म के समय सांस लेने में समस्या होने की संभावना कम हो जाती है।

नॉर्मल डिलीवरी करने का खतरा-

  • लेबर पेन और वजाइनल डिलीवरी होने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। पहली बार जो महिला माँ बनती है, उनको इस डिलीवरी में औसतन चार से आठ घंटे लगता है।
  • नॉर्मल डिलीवरी के दौरान, योनि के आसपास की स्किन और टीशू फैल सकते हैं और फट सकते हैं, क्योंकि बेबी बर्थ कैनल के माध्यम से निकलता है। अत्यधिक खिंचाव और फटने पर टांके लगाने पड़ सकते हैं। यह खींचने और चीरने से श्रोणि की मांसपेशियों में कमजोरी या चोट लग सकती है जो यूरीन और बॉवेल फंक्शन को नियंत्रित करती हैं।
  • वजाइनल डिलीवरी होने के कारण बाद में पेशाब लगने पर  लिक होने का खतरा रहता है।
  • अगर किसी महिला को लंबे समय तक प्रसव पीड़ा हुई है या यदि बच्चा बड़ा है, तो वजाइनल प्रोसेस के दौरान ही बच्चे को चोट लग सकती है, जिसके परिणामस्वरूप खोपड़ी में चोट लग सकती है या कॉलरबोन टूट सकती है।
  • नॉर्मल डिलीवरी से पेरिनियम, वजाइना और गुदा के बीच के क्षेत्र में भी दर्द हो सकता है।
नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें सिजेरियन डिलीवरी के फायदे और नुकसान
नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें सिजेरियन डिलीवरी के फायदे और नुकसान/चित्र स्रोत: फ्रीपिक

नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और जानें सिजेरियन डिलीवरी के फायदे और नुकसान। Pros or Cons of Cesarean Delivery in Hindi

सिजेरियन डिलीवरी से फायदा-

  • अगर गर्भवती माँ को नॉर्मल डिलीवरी से बहुत डर लगता है तो उसके डर के कारण कोई समस्या न हो, इसके लिए सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प लिया जाता है।
  • जिन महिलाओं का सी-सेक्शन होता है, उनमें नॉर्मल डिलीवरी कराने वाली महिलाओं की तुलना में मूत्र असंयम और पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स से पीड़ित होने की संभावना कम होती है।
  • सिजेरियन डिलीवरी होने पर पहले से डेट पता होने पर इंतजाम और तैयारी करने में आसानी होती है।
  • यदि बेबी या माँ खतरे में हो, तो सी-सेक्शन जीवन रक्षक हो सकता है।

सिजेरियन डिलीवरी से खतरा-

  • सिजेरियन डिलीवरी में रिकवरी में समय लगता है। इसके लिए दो से चार दिनों तक अस्पताल में रहने की जरूरत पड़ती है।
  • सिजेरियन डिलीवरी से पोस्ट डिलीवरी समस्याएं जैसे कि इंफेक्शन और सूजन होने का खतरा रहता है।
  • सी-सेक्शन में खून की कमी का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि ऑपरेशन के दौरान बॉवेल या ब्लाडर घायल हो सकता है या रक्त का थक्का बन सकता है।
  • सिजेरियन डिलीवरी होने पर बच्चे को ब्रेस्डफीड करवाने में नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में देरी होती है।
  • एक बार सिजेरियन डिलीवरी होने पर अगली बार सिजेरियन डिलीवरी करवाने की ही ज्यादा संभावना रहती है।

एक्सपर्ट टिप्स:  अब तो आप जान ही गए हैं कि नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी कैसे होती है और दोनों के क्या फायदे और नुकसान हैं। लेकिन दोनों डिलीवरी के बाद रिकवरी के लिए जिस तरह से डायट का ख्याल रखना जरूरी होता है, उसी तरह से हाइजीन का ध्यान रखना भी जरूरी होता है। डिलीवरी के बाद स्किन सेंसिटिव रहती है, इसलिए माइल्ड सोप या बेबी वाश या बेबी मॉइश्चराइजिंग क्रीमी बाथिंग बार का इस्तेमाल करना सेफ हो सकता है।

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